असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन जिसे
मजलिस भी कहा जाता है, काफ़ी पुराना संगठन है. लगभग 85 साल पहले हैदराबाद में सामाजिक-धार्मिक संस्था के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी.
1928 में
नवाब महमूद नवाज़ खान ने मजलिस स्थापना की थी और 1948 तक उनके पास इस
संगठन की बागडोर रही. भारत की स्वतंत्रता के बाद यह संगठन हैदराबाद को
स्वतंत्र देश के रूप में बनाए रखने की वकालत करता था.
वरिष्ठ पत्रकार उमर फ़ारूक़ बताते हैं, "असदुद्दीन ओवैसी जिस तरह से मुस्लिमों की समस्याओं पर राष्ट्रीय स्तर पर संसद के अंदर और बाहर मीडिया
में मुखर होकर बोलते रहे हैं, उससे पूरे राज्य और देश में अल्पसंख्यकों को
लगा है कि कोई एक ऐसा लीडर है जो हमारी बात कर रहा है."
इसका प्रभाव
भी हुआ और हैदराबाद से बाहर मजलिस को सफलता मिली महाराष्ट्र में. अभी
महाराष्ट्र से एआईएमआईएम का एक सांसद है और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उसे दो सीटें मिली हैं. पिछली बार भी विधानसभा चुनाव में उसने दो सीटें
जीती थीं. इस बार वहां से हार मिली है मगर दो नई सीटों पर उसके विधायक
जीते हैं.
इसीलिए जब 1948
में हैदराबाद का भारत में विलय हुआ था, तब भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था. उस समय इसके अध्यक्ष रहे क़ासिम राजवी को गिरफ़्तार कर लिया
गया था. बाद में राजवी पाकिस्तान चले गए मगर संगठन की ज़िम्मेदारी उस समय के मशहूर वकील अब्दुल वहाद ओवैसी को सौंप गए थे.
तबसे, यानी पिछले
पांच दशकों से अधिक समय से ओवैसी परिवार ही मजलिस को चला रहा है. 1957 में
मजलिस को राजनीतिक पार्टी के तौर पर बहाल किया गया, इसके नाम में 'ऑल इंडिया' जोड़ा गया और इसका संविधान भी बदला गया.
एक समय हैदराबाद तक ही सीमित रही एक पार्टी के लिए यह बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है मगर इसके लिए ओवैसी कई सालों से काम कर रहे थे.
बीबीसी
मराठी सेवा के संपादक आशीष दीक्षित बताते हैं, "लगभग 10 साल पहले असदुद्दीन ओवैसी ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में काम करना शुरू किया. एक
समय यह निज़ाम के हैदराबाद स्टेट का हिस्सा था. 1948 तक मराठवाड़ा क्षेत्र
की राजधानी था हैदराबाद इसलिए दोनों जगहों के बीच अच्छे रिश्ते थे."
"इस
इलाक़े में मुसलमान आबादी अपेक्षाकृत अधिक है. उदाहरण के लिए मराठवाड़ा की
क्षेत्रीय राजधानी औरंगाबाद की ही बात करें तो यहां लगभग तीस फ़ीसदी
मुसलमान हैं. तो एआईएमआईएम ने औरंगाबाद, नांदेड़ और परभणी जैसे शहरों में फ़ोकस किया और स्थानीय निकाय के चुनाव लड़ना शुरू किया. इसमें उसे सफलता भी
मिली."
2012 में नांदेड़ नगर निगम चुनाव की 81 सीटों में एआईएमआईएम ने 11 सीटें जीती थीं. 2015 में औरंगाबाद की 113 सीटों वाली म्यूनिसिपल
कॉर्पोरेशन में एमआईएम ने 54 प्रत्याशी उतारे थे जिनमें 26 ने जीस हासिल की
थी. इस तरह की जीतों से एआईएमआईएम की हिम्मत बढ़ी और उसे लगा कि महाराष्ट्र में उसके लिए संभावनाएं हैं.
आशीष दीक्षित कहते हैं,
"2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना, बीजेपी, कांग्रेस और एनसीपी अलग-अलग
लड़ रही थीं. वोट बंटने का फ़ायदा मजलिस को हुआ और औरंगाबाद सेंट्रल व मुंबई के भाइखला से इसके दो विधायक जीत गए. इसके बाद मजलिस ने महाराष्ट्र
पर और ध्यान देना शुरू किया. असदुद्दीन और उनके भाई अकबरुद्दीन अक्सर
महाराष्ट्र आते और बैठकें करते. उन्होंने राज्य में अपनी पार्टी विधिवत
इकाइयां स्थापित कीं और पदाधिकारी नियुक्त किए."
अब्दुल वहाद ओवैसी
के बाद 1976 में पार्टी की ज़िम्मेदारी उनकी बेटे सलाहुद्दीन ओवैसी को मिली
जो साल 2004 तक लगातार छह बार हैदराबाद के सांसद रहे.
13 मई 1969 को हैदराबाद में जन्मे असदुद्दीन ओवैसी राजनीति में आने से पहले लंदन से क़ानून की पढ़ाई कर रहे थे. जब वह लौटे तो उनके पिता
सलाहुद्दीन ओवैसी पार्टी के अध्यक्ष थे.
असदुद्दीन पहली बार 2004
में हैदराबाद से सांसद चुने गए थे. वह 2019 में चौथी बार यहां से सांसद
चुने गए हैं. 1984 से लगातार हैदराबाद लोकसभा सीट ओवैसी परिवार के ही सदस्य जीते हैं.
जब असद के पिता पार्टी के अध्यक्ष थे, उस समय भी मजलिस
आंध्र प्रदेश या आज के तेलंगाना से लगते महाराष्ट्र और कर्नाटक के उन
इलाक़ों में सक्रिय थी मगर उसने आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की थी. मगर पिता
के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद जब असदुद्दीन ने जब ज़िम्मेदारी संभाली तो उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की मौजूदगी का अहसास करवाने
की कोशिश की.
अब सलाहुद्दीन
ओवैसी के बेटे असदुद्दीन ओवैसी पार्टी के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद
हैं और उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी विधानसभा में पार्टी विधायक दल के नेता हैं. तेलंगाना विधानसभा में उनकी पार्टी के सात विधायक हैं.
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